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|रचनाकार=अभिषेक कुमार अम्बर
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<poem>
हरजाई ने खेली है संग मेरे ऐसी होली
तन मन है मेरा भीगा भीगी है मेरी चोली।

आई है आज होली आई है आज होली
जी भर के खेलों यारो कर लो हंसी ठिठोली।

बिजली गिरा रही हैं सूरत ये भोली भोली
इनकी अदाएं सीनों पे बन के चलती गोली।

निकले हैं अपने हाथों में ले के रंग बांके
गोरी के गाल रँगने करने हंसी ठिठोली।

राधा तो छुप गई है बच कर कदम्ब पीछे
गोपाल ढूंढते हैं ग्वालों की ले के टोली।

जब तूने अपने रंग में हमको रंगा था साजन
अब तक न भूल पाए हम वो हसीन होली।
</poem>
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