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|रचनाकार=मोहित नेगी मुंतज़िर
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<poem>
सुनो संगी चमन वीरों तुम्हारा सत्य हो सपना
हौसला दिल में उम्मीदें निगाहें लक्ष्य पर रखना।

जो है संकल्प करता तू अटल स्वलक्ष्य पाने को
रगो में जोश इतना भर हो सक्षम नभ झुकने को
लिए दृढ़ प्रण बढ़ते चल, स्वाद अनुभव का भी चखना।
हौसला दिल में उम्मीदें..............।

अभी शुरुआत है तेरी न अपनाजोश खो देना
कभी कँटीले मिलेंगे पथ, न अपना होश खो देना
मंज़िल न मिले जब तक, न तब तक तू कभी रुकना।
हौसला......................।

तुझे ग़ैरों की क्या चिंता, तू तो कर्मों की चिंता कर
बढ़ सत्कर्म करते तू, सुप्त स्वाभिमान ज़िंदा कर
अगर स्वाभिमान हो दिल में न सीखेगा कभी झुकना।
हौसला.....................।

यूँ तो संकल्प करते हैं तुझ जैसे पथिक सारे
मगर पहुंचा वही मंज़िल जो हिम्मत न कभी हारे
बना हथियार हिम्मत को, कदम रणभूमि में रखना।
हौसला.....................।

तेरा सर झुक नहीं सकता, तेरा पग रुक नहीं सकता
हो सांसों में भरी सरगम इरादा चुक नहीं सकता
निडर कदमों से बढ़ता चल है रण तेरा स्वयं अपना।
हौसला.....................।
</poem>
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