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06:56, 25 मार्च 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विजय राही
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|संग्रह=
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<poem>
हवा के साथ चलना ही पड़ेगा
मुझे घर से निकलना ही पड़ेगा ।
मेरे लहजे में है तासीर ऐसी,
कि पत्थर को पिघलना ही पड़ेगा ।
पुराने हो गये किरदार सारे,
कहानी को बदलना ही पड़ेगा ।
तुम्ही गलती से दिल में आ गये थे,
तुम्हे बाहर निकलना ही पड़ेगा ।
वो जो मंजिल को पाना चाहता है,
उसे काँटो पे चलना ही पड़ेगा ।
</poem>