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06:57, 25 मार्च 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=विजय राही
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<poem>
जहां जाना है जाओ यार लेकिन शान से जाओ ।
तुम्हारी बात है कि मान या अपमान से जाओ ।
हमारे मुल्क की गंदी सियासत रोज कहती है,
मेरे दामन में आकर आप भी ईमान से जाओ ।
मेरे बच्चों ! तुम्हें आगे ज़माने से निकलना है,
दुआएं है मेरी तुम ख़ूब आगे शान से जाओ ।
वहीं होगा तुम्हारा भी ठिकाना एक कोने में,
ज़रा तुम देख लेना जो कभी शमशान से जाओ ।
हमारे ख़ून में शामिल है मिट्टी की वफ़ादारी
वहीं काफ़िर ये कहते है कि हिन्दुस्तान से जाओ ।
</poem>