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06:58, 25 मार्च 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विजय राही
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
शजर की सरपरस्ती माँगता है ।
परिन्दा एक टहनी माँगता है ।
उतर कर वो मेरी आँखों के रस्ते,
मक़ाने-दिल की चाबी माँगता है ।
मेरे लहजे पे दरिया बोल उठ्ठा,
कोई ऐसे भी पानी माँगता है...?
पकड़ लेता है दिल ही हाथ वरना,
गला मेरा तो रस्सी माँगता है ।
कभी जब वस्ल की होती है बातें,
वो मुझसे रात सारी माँगता है ।
मेरा दिल भी फ़कीरों की तरह है,
ये सहराओं से पानी माँगता है ।
वो जब आनी है, तब आयेगी 'राही',
तू क्यों पटरी पे गाडी माँगता है ।
</poem>