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बादलों का के जादुई दुर्ग, जिसमें में बह रहे हैं हम ...कौन जानता है कि हम अभी तक गुज़रे नहीं हैं कई स्वर्गों के बीच से ?चमकती हुई आँखों से कैसे रचूँ मैं वह सब?
हम समय में गुम हो चुके हैं
ढकेल दिया गया है हमें कमरे के से बाहररात और अतल गहराइयों के पार उड़ती हुई पत्तियाँ हैं हम ।
कौन जानता है कि हमने अभी तक ईश्वर के चारों ओर उड़ान नहीं भरी हैहमनेऔर चूँकि उसे देखा बिना ही बिजली की सी तेज़ गति से हम बदल गए झाग मेंइसलिए उसने हमारे बीजों को फेंक दियाअन्धेरी पीढ़ियों के बीच।
अब दोषी कौन है ?
बादलों के गोले हमारे साथ ऊपर ही ऊपर उड़ते जाते हैं
हलकी हवा पहले ही हमें लुंज-पुंज कर रही है
और जब आवाज टूटती अब आवाज़ टूट रही है और हमारी सांस रुक जाती रही है ...
क्या हमारे अन्तिम क्षण भी जादुई होंगे ?
'''मूल जर्मन से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
und wenn die Stimme bricht und unser Atem steht...?
Bleibt Verwunschenheit für letzte Augenblicke?
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