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इनसान का नसीबा / इंगेबोर्ग बाख़मान्न / अनिल जनविजय
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16:15, 29 मार्च 2020
<poem>
बादलों के जादुई दुर्ग में बह रहे हैं हम ...
कौन जानता
हो सकता
है कि हम गुज़रे
नहीं हैं
हों
कई स्वर्गों के बीच से ?
चमकती हुई आँखों से कैसे रचूँ मैं वह सब ?
हम समय में गुम हो चुके हैं
अनिल जनविजय
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