भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
ताजा पत्तियों के बीच इस तरह का खेल देखा होने की बात कभी कभी करते हैं
और कभी-कभी ही कई कवि इस तरह एक दूसरे को पकड़ते छोड़ते हुए बच्चों की तरह दौड़ रहे होते हैं कि रोशनी उन सबके बीच फंसे कमजोर थके हारे खिलाड़ी की तरह खेल से बाहर होने लगती है
खैर,यह सब सादृश्य विधान है, आपने देखा ही होगा
पर क्या आईने के बीच गिरती पड़ती उछलती उस चंचला को आपने देखा है?
Anonymous user