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Kavita Kosh से
देखने के नाम पर
मेरे पास सिर्फ़ वह अंधेरा है
जो बढ़ता ही चला जा रहा है
लेकिन सुनने के नाम पर
ढेर सारी किलकारियाँ हैं
घुटनों के बल
खिसक-खिसक कर आते हुए बच्चे की।
मैं
जो कुछ भी देख पा रहा हूँ
वह आज है।
लेकिन जो सुन रहा हूँ
वह आने वाला कल है।
(रचनाकाल : 05.01.1978)