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हाइकु-२ / मोहित नेगी मुंतज़िर

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<poem>
चिड़िया बोली
देवों ने सूरज की
खिड़की खोली।

गंगा का जल
तेरा है प्रियतम
मन निश्छल।

क़ैदी जीवन
समाज से है बंधा
ताज़ा योवन।

आँख का तारा
ले गया वृद्धाश्रम
पापा का प्यारा।

आया सावन
ईश्वर की सौगात
बूँदें पावन।

मां का आँचल
बहती सरिता का
शीतल जल।

रक्षाबंधन
प्यार के धागों पर
आया जीवन।

अपना घर
सपना गरीब का
आंखों पर।
स्वागत तेरा
हिमवंत देश में
गॉंव है मेरा।

खूब सुहाती
गर्मी के मौसम में
पिंडर घाटी।

चाय का प्याला
थकान को पी जाता
जादूगर आला।

किसका डर
आंखें रोती रहती
जीवन भर।

आओगे कब
ये जीवन की बेला
ढलेगी जब।

चल दिखाऊँ
असली जीवन से
तुझे मिलाऊं।
</poem>
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