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चौंक कर उसे मिटा देती हूँ
(उसे मिटाते दुःख क्यों नहीं होता कनु!
क्या अब मैं केवल दो यन्त्रों का पुंज-मात्र हूँ?
- दो परस्पर विपरीत यन्त्र -
उन में से एक बिन अनुमति नाम लिखता है
दूसरा उसे बिना हिचक मिटा देता है!)
और नीचे कपोलों पर झूलती मेरी रूखी अलकों
से खेल करती है
और मैं आँख मूंद कर बैठ जाती हूँ
और कल्पना करना चाहती हूँ कि
अपने आँचल में छिपा कर लायी थी
वह आज कितना, कितना, कितना महान हो गया है;
लेकिन मैं कुछ नहीं सोच पाती
सिर्फ -
जहाँ तुम ने मुझे अमित प्यार दिया था
वहीं बैठ कर कंकड़, पत्ते, तिनके, टुकड़े चुनती रहती हूँ
तुम्हारे महान बनने में
क्या मेरा कुछ टूट कर बिखर गया है कनु!
नया है
नया हैकेवल मेरा
केवल मेरासूनी माँग आना
सूनी माँग आना, शिथिल चरण, असमर्पिता
सूनी माँग, शिथिल चरण, असमर्पिता  ज्यों का त्यों लौट जाना ........