भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatGhazal}}
<poem>
कहानी में हमने हक़ीक़त बुनी है।
ज़माने ने लेकिन कहाँ वो सुनी है।
बहारों ने मुझको हँसाया-रुलाया,
ग़नीमत है तुमने शराफ़त चुनी है।
 
मुहब्बत न हारी किसी से कभी भी,
ये सच्चाई अब तक मगर अनसुनी है।
 
दिया ले के तुम भी पुकारो, तलाशो!
वो दीवाना है, वहशतों का धुनी है।
 
अदब से नहीं ‘नूर’ ही सिर्फ़ वाकिफ़,
बशर एक से एक बढ़कर गुनी है।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits