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04:02, 25 अप्रैल 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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<poem>
बहुत बोल चुके
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
बहुत बोल चुके, अब न बोलो
अपने मन की गाँठ न खोलो।
गाँठ खोलकर अब तक तुमने
जितना भी था, सभी गँवाया।
मेरे यार ज़रा बतला दो
बदले में तुमने क्या पाया ?
बहुत तोल चुके , अब न तोलो
जिसको अब तक तुमने तोला
उन सबको पाया है पोला
वार किया उसने ही छुपकर
जिसको तुमने समझा भोला।
अब सबके मन अमृत न घोलो
अमृत घोला , जिनके मन में
उनका मन विषबेल हो गया।
धोखा देकर , खिल-खिल हँसना
उन लोगों का खेल हो गया।
बहुत बोल चुके, अब न बोलो
अपने मन की गाँठ न खोलो।
-0-
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