भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम करें राष्ट्र आराधन

520 bytes removed, 11:39, 27 अप्रैल 2020
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=|अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKCatGeet}}<poem>हम करें राष्ट्र आराधन<br>, आराधनहम करें राष्ट्र आराधन<br>, आराधनतन से , मन से , धन से<br>तन मन धन जीवन से<br>हम करें राष्ट्र आराधन<br><br>, आराधन
अन्तर से , मुख से , कृति से<br>निश्छल हो निर्मल मति से<br>श्रद्धा से मस्तक नत से<br>हम करें राष्ट्र अभिवादन<br><br>हम करें राष्ट्र आराधन
अपने हँसते शैशव सेअपने खिलते यौवन सेप्रौढ़ता पूर्ण जीवन सेहम करें राष्ट्र का अर्चनहम करें राष्ट्र अभिवादन<br>का अर्चनहम करें राष्ट्र आराधन<br><br>
अपने हँसते शैशव से<br>अतीत को पढ़करअपने खिलते यौवन से<br>अपना इतिहास उलटकरप्रौढता पूर्ण जीवन से<br>अपना भवितव्य समझकरहम करें राष्ट्र का अर्चन<br><br>चिंतनहम करें राष्ट्र का चिंतनहम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र का अर्चन<br>हम करें राष्ट्र आराधन<br><br> अपने अतीत को पढ़ कर<br>अपना इतिहास उलट कर<br>अपना भवितव्य समझ कर<br>हम करें राष्ट्र का चिंतन<br><br> हम करें राष्ट्र का चिंतन<br>हम करें राष्ट्र आराधन<br><br> है याद हमें युग-युग की<br>जलती अनेक घटनायें<br>जो माँ के की सेवा पथ पर<br>आयी बन कर आई बनकर विपदायें<br><br> हमनें हमने अभिषेक किया था<br>जननी का अरि शोणित अरिशोणित से<br>हमने श्रृंगार किया था<br>माता का अरि मुंडो अरिमुंडो से<br><br> हमने ही उसे दिया था<br>सांस्कृतिक उच्च सिंहासन<br>माँ जिस पर बैठी सुख से<br>करती थी जग का शासन<br><br> अब काल चक्र की गति से<br>वह टूट गया सिंहासन<br>अपना तन मन धन दे कर<br>हम करें पुन: संस्थापन<br><br> हम करें पुन: संस्थापन<br>हम करें राष्ट्र आराधन<br><br> हम करें राष्ट्र आराधन<br>हम करें राष्ट्र आराधन<br>तन से मन से धन से<br>तन मन धन जीवन से<br>हम करें राष्ट्र आराधन<br><br>
हमने ही उसे दिया था
सांस्कृतिक उच्च सिंहासन
माँ जिस पर बैठी सुख से
करती थी जग का शासन
अब काल चक्र की गति से
वह टूट गया सिंहासन
अपना तन मन धन देकर
हम करें राष्ट्र आराधन</poem>
नोट: यह कविता बहुचर्चित टीवी सीरीयल ’चाणक्य’ के एक एपीसोड में प्रयोग में लायी गयी है.
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,131
edits