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|रचनाकार=कुमार विकल
|संग्रह= रंग ख़तरे में हैं / कुमार विकल
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सामने क्वार्टरों में जो एक बत्ती टिमटिमाती है

वह मेरा घर है

इस समय रात के बारह बज चुके हैं

मैं मीरा मजूमदार के साथ

मार्क्सवाद पर एक शराबी बहस करके लौटा हूँ

और जहाँ से एक औरत के खाँसने की आवाज़ आ रही है

वह मेरा घर है.


मीरा मजूमदार का कहना है

कि इन्क़लाब के रास्ते पर एक बाधा मेरा घर है

जिसमें खाँसती हुई एक बत्ती है

काँपता हुआ एक डर है.

इन्क़लाब मीरा की सबसे बड़ी हसरत है

लेकिन उसे अँधेरे क्वार्टरों

खाँसती हुई बत्तियों से बहुत नफ़रत है.


वह ख़ुद खनकती हुई एक हँसी है

जो रोशनी की एक नदी की तरह बहती है

लेकिन अपने आपको

गुरिल्ला नदी कहती है


मीरा मजूमदार इन्क़लाबी दस्तावेज़ है

पार्टी की मीटिंग का नया गोलमेज़ है.


मीरा मजूमदार एक क्रांतिकारी कविता है

अँधेरे समय की सुलगती हुई सविता है


उसकी हँसी में एक जनवादी आग है

जिससे इन्क़लाबी अपनी सिगरेटें सुल्गाते हैं

इन्क़लाब के रास्ते को रोशन बनाते हैं.



मैंने भी आज उसकी जनवादी आग से

अधजले सिगरेट का एक टुकड़ा जलाया था

और जैसे ही मैंने उसे उँगलियों में दबाया था

झट से मुझे अपना क्वार्टर याद आया था.


मीरा मजूमदार तब—

मुझको समझाती है.

मेरे विचारों में बुनियादी भटकाव है

कथनी और करनी का गहरा अलगाव है.

मेरी आँखों में जो एक बत्ती टिमटिमाती है

मेरी क्रांति—दृष्टि को वह धुँधला बनाती है

और जब भी मेरे सामने

कोई ऐसी स्थिति आती है—

एक तरफ़ क्रांति है और एक तरफ़ क्वार्टर है

मेरी नज़र सहसा क्वार्टर की ओर जाती है.
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