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02:42, 5 मई 2020
<poem>
'''जब सूरज जग जाता है'''
आँखें मलकर धीरे-धीरे
सूरज जब जग जाता है ।
सिर पर रखकर पाँव अँधेरा
चुपके से भग जाता है ।
हौले से मुस्कान बिखेरी
पात सुनहरे हो जाते ।
डाली-डाली फुदक-फुदक कर
सारे पंछी हैं गाते ।
थाल भरे मोती ले करके
धरती स्वागत करती है ।
नटखट किरणें वन-उपवन में
खूब चौंकड़ी भरती हैं ।
कल-कल बहती हुई नदी में
सूरज खूब नहाता है
कभी तैरता है लहरों पर
डुबकी कभी लगाता है ।