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<poem>
'''जब सूरज जग जाता है'''
 
आँखें मलकर धीरे-धीरे
 
सूरज जब जग जाता है ।
 
सिर पर रखकर पाँव अँधेरा
 
चुपके से भग जाता है ।
हौले से मुस्कान बिखेरी
 
पात सुनहरे हो जाते ।
 
डाली-डाली फुदक-फुदक कर
 
सारे पंछी हैं गाते ।
थाल भरे मोती ले करके
 
धरती स्वागत करती है ।
 
नटखट किरणें वन-उपवन में
 
खूब चौंकड़ी भरती हैं ।
कल-कल बहती हुई नदी में
 
सूरज खूब नहाता है
कभी तैरता है लहरों पर
 
डुबकी कभी लगाता है ।