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ताई दिये शूरे शूरे
रौंगे -रौशे जाल बुनी
उन ही से मन में मेरे
रची मंने मन में फाल्गुनी
स्वप्न की छवि बनाते
जो थोड़ी भी सी दूर भी जाते
भावना स्वर कँपाते
थोड़ी सी छुअन लगी...
'''हिन्दी में अनुवाद : मानोशी चटर्जी'''