{{KKPrasiddhRachna}}
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हम दीवानों की क्या हस्ती, आज यहाँ कल वहाँ चले।मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले।
आए बनकर उल्लास कभी, आँसू आंसू बनकर बह चले अभीसब कहते ही रह गए, अरे , तुम कैसे आए, कहाँ चले।
किस ओर चले? मत ये पूछो, बस , चलना है इसलिए चलेजग से उसका कुछ लिए चले, जग को अपना कुछ दिए चले।
दो बात कहीं, दो बात सुनी, कुछ हँसे हंसे और फिर कुछ रोएछक कर सुख-दुःख के घूँटों को, हम एक भाव से पिए चले।
हम भिखमंगों की दुनिया में, स्वछन्द लुटाकर प्यार चले
हम एक निशानी उर पर, ले असफलता का भार चले।
हम मान रहित, अपमान रहित, जी भर कर खुलकर खेल चुके
हम हँसते हँसते आज यहाँ, प्राणों की बाजी हार चले। हम भला-बुरा सब भूल चुके, नतमस्तक हो मुख मोड़ चलेअभिशाप उठाकर होठों पर, वरदान दृगों से छोड़ चले ।
अब अपना और पराया क्या, आबाद रहें रुकने वाले
हम स्वयं बंधे बन्धे थे और स्वयं, हम अपने बन्धन तोड़ चले।
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