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<poem>
कौन इधर आता है
कौन उधर जाता है
अंधी आँखों का अनुमान है
लाठी ही उसका भगवान है।
पथरीले मोड़ों पर
घुटनों में जोड़ों पर
टीस सी उभरती है
पारबती मरती है
बाप था शराबी आदमी कबाबी
पारो भी एक बेजुबान है।
एक मलिन आँचल है
गिद्धों का बादल है
जूतों में कीलें हैं
रास्ते नुकीले हैं
बपर्फ सी पिघलती
और सिर्फ चलती
ओठों पर अड़ियल मुस्कान है।
जो न गिड़गिड़ाती है
रोटियाँ कमाती है
मौत से न डरती है
रोज युद्ध करती है
सदी ठहर जाये
नदी ठहर जाये
पारा सा चलता इंसान है।
</poem>
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