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|रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी
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|संग्रह=मैं एक हरिण और तुम इंसान / सुरेन्द्र डी सोनी
}}
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<poem>
सिर्फ़ यह जानने के लिए
गुमनामी में मरना ज़रूरी नहीं है मेरे दोस्त
कि तुम्हारी शनाख़्त के लिए कौन-कौन आता है...

तुम्हें यह भ्रम कैसे हो गया
कि इस नामवरी में लोग तुम्हें पहचानते हैं..!
</poem>
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