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<poem>
डरे भी क्यों मन उसका?
भस्मीभूत होने से भला।
कामनाओं की चिता से-
अधिक भयावह क्या होगा?

जलती डायरी उसकी,
हरेक सपना, हरेक पन्ना।
कि अक्षरों की चिता से-
अधिक भयावह क्या होगा?

निवाला आ गया आड़े,
अब वो बेकार कहलाया।
कि अकिंचन की चिता से-
अधिक भयावह क्या होगा?

सदा ही सींचकर कर पानी-
जिन पौधों को सहलाया;
उनकी पंखुड़ियों की चिता से-
अधिक भयावह क्या होगा?

न जाने क्यों लोगों ने-
हवन का नाम दे डाला?
कि वृक्षों की चिता से-
अधिक भयावह क्या होगा?

</poem>