भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKCatKavita}}
<poem>
बेशर्म ख्वाब बेअदब ख्वाहिशें मैं लिखना चाहती हूं बगावती ख्याल कुछ ऐसे लेख खाली से इस दिल में जो जुड़े होंकितना कचरा भरा है देश, दुनिया और समाज हकीकी सेरुबरु कुछ ऐसी कविताएं जिनमें न हो बारिश, फूल और भंवरे जिनमें हो भूख, समानता, संघर्ष और क्रांति हुक्म की बातेंतामील करता हदों में रहता हर शख्स आज भी इस कचरे से दूरजब मैं लिख रही हूं कुछकितना साफ सुथरा दिखता है तो चाहती हूं आदतों में शुमार अदब कि लिखूंतहजीब से लदा कोरोना संकट तरकीबों से जूझ रहे लोगों के हालातों अलहदा और इंडिया और भारत के बीच फैलेये हुस्न मुझे मगर तमाम विरोधाभासों की कहानीनागंवार लगता है मैं अब चाहती हूं कि लिखूंध्वस्त होते उन तमाम जन आंदोलनों के बारें इस जिस्म में कुछभी नूर हो जो एक नया चोला पहनकर छेड़े गए थेमगर जिनकी पटकथानेताओं के चरित्र पर ही आधारित थीऔर जिन्होंने बिल्कुलनेताओं शर्मों हया की तरह वादों को तोड़ने के लिए ही भरा थाइस चाशनी में बड़ी-बड़ी बातों शरारत का दमतड़का मैं लिखना चाहती हूं गरीबी रेखा तवे सी रोटी के उन आंकड़ों के बारे सुरूर में जिन पर हमेशा संसद, टीवी चैनलों और अखबारों तंदूरी नान सा गुरूर हो दिल में बहस होती हैऔर हमेशा ये गिनती अधूरी रह जाती है कि कितने लोगयूं अखबार बिछाकर और ओढ़कर ही सो रहे हैं फुटपाथों परऔर थोड़ा कचरा होना भी न जाने कितनी खबरें हैं, जिनसे हर रोज गुजरते हुएमैं उन पर सहमती हूं, सोचती हूं, उन्हें समझती हूं और कुछ लिखना चाहती हूं। लेकिनमैं बस... लिखती हूं और लिखती जाती हूं तुम्हें,औरतुम्हारे इन्तजार को।जीने के लिए जरूरी है।
</poem>