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14:05, 23 मई 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=हिमानी
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<poem>
हम लिख रहे हैं
अतीत के अपराध
और वर्तमान के राग
कि भविष्य बेहतर हो सके
हम दिख रहे हैं
इतिहास के भगत सिंह जैसे
21वीं सदी में क्रांति की मशाल लिए
कि आने वाली सदियां हमें भी याद करें
हम खोल रहे हैं जुबां
चुप रहने की
त्रासदियों के बीच भी
कि सच गूंगा न होने पाए
और झूठ भी सुन सके
उसकी गूंज को
हम शामिल हैं
हर उस विचार के साथ
कि जिससे समाज को
समानता की सूरत मिल सके
हमने कुछ रास्ते अख्तियार किए हैं
दिखाने के लिए दूसरों को रास्ता
कि हम गर मजबूर हो गए
कहीं अपनी अपनी मजदूरी के चलते तो
वो दूसरे उन रास्तों पर चल सकें।
मगर अब हमें बांध लेनी चाहिए
अपनी अंधी उम्मीदों की ये पोटली
कि किसी दूसरे के कंधों को ये बोझ न सहना पड़े।
</poem>