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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=नोमान शौक़ }} MERCY KILLING पर लिखना चाहता हूंहूँ<br />
एक सुंदर सी कविता<br />
लेकिन मैं कर नहीं पा रहा<br />
उस मार्मिक सौन्दर्य की अनुभूति<br />
जो किसी लाश के चेहरे पर बिखरी<br />
ज़र्द मासूमियत को<br />
सुनसान आंखों आँखों से सहलाने के बाद होती है<br />
मानस -पटल पर बनने वाले बिम्ब के<br />
चीथडे क़र देती हैं<br />
परिजनों के विलाप से उठने वाली <br />
ख़ूबसूरत नर्सें कम नहीं कर सकतीं<br />
पेशानी पर झूलती लटों से<br />
ब्रेन -टयूमर से होने वाले दर्द को<br />जब मरीज़ आखिरी गांठ गाँठ खोल रहा हो<br />बची -खुची सांसों साँसों से बंधी पोटली की<br />
तैयार बैठे हैं सगे-सम्बंधी<br />
डॉक्टर और यमदूत से झगड़ने के लिए<br />
बौखलाए फिरते हैं इधर-उधर<br />
गौण हो गया है सबकुछसब-कुछ<br />
पृथ्वी घूम रही है<br />
उनके सीने में धंसी धँसी ज़ंग लगी कील पर<br />
किसी को पहली बार देख रहे हैं<br />
इस तरह छटपटाते हुए <br />
नहीं आयेगा आएगा डॉक्टर<br />जब तक चाय की एक घूंट घूँट भी<br />
बची है उसकी प्याली में<br />
अति भावुकता, संवेदनशीलता<br />
मेरी कविता का अंत<br />
एहसास है मुझे भी<br />
लेकिन क्या करूंकरूँ<br />
चाय में गिरी हुई मक्खी अब मर चुकी है !<br />