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आस जोगन / कविता भट्ट

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|संग्रह=मन के कागज़ पर / कविता भट्ट
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<poem>
आस जब जोगन हो जाए।
कण्टकपथ यौवन हो जाए।
जहर मौन हो- मन पीता है;
पीड़ामय जीवन हो जाए।

पलक-द्वार जब वह न खोले।
पीर जिया की अश्रु न बोले।
तब यह समझो घट रीता है;
जीवन इसमें रस न घोले।

कठिन हो जब मन समझाना।
विकल जी की प्यास बुझाना।
मृत्यु सरल, कठिन है जीवन;
क्या साँस का आना-जाना?
</poem>