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प्यार पनपता है मन में <br />
अपने आप<br />
बिना किसी प्रयत्न के<br />
जिस तरह जंगल में उग आते हैं<br />
असंख्य छोटे छोटे पौधे<br />
लेकिन घृणा<br />
तैयार की जाती है कृत्रिम विधियों से<br />
किसी घिनावनी प्रयोगशाला में<br />
और परोस दी जाती है<br />
स्वादिष्ट व्यंजनों की तरह<br />
ज़बरदस्ती खाने की मेज़ पर<br />
(हो सकता है उबकाई आ जाए<br />
आपको मेरी कविता पढ़ते समय)<br />
 
लेकिन यक़ीन कीजिए<br />
इन्सानों के भुने हुए मांस<br />
औरतों के कटे हुए स्तन<br />
और बच्चों की टूटी हुई पसलियां<br />
बड़े ही चाव से खाते हैं कुछ लोग<br />
छुरी-कांटे से<br />
चटख़ारे ले लेकर<br />
और पूछते हैं<br />
कब होगी अगली दावत<br />
और कहां !<br />
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