भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नोमान शौक़
}}
प्यार पनपता है मन में <br />
अपने आप<br />
बिना किसी प्रयत्न के<br />
जिस तरह जंगल में उग आते हैं<br />
असंख्य छोटे-छोटे पौधे<br />
लेकिन घृणा<br />
तैयार की जाती है कृत्रिम विधियों से<br />
किसी घिनावनी प्रयोगशाला में<br />
और परोस दी जाती है<br />
स्वादिष्ट व्यंजनों की तरह<br />
ज़बरदस्ती खाने की मेज़ पर<br />
(हो सकता है उबकाई आ जाए<br />
आपको मेरी कविता पढ़ते समय)<br />
लेकिन यक़ीन कीजिए<br />
इन्सानों के भुने हुए माँस<br />
औरतों के कटे हुए स्तन<br />
और बच्चों की टूटी हुई पसलियाँ<br />
बड़े ही चाव से खाते हैं कुछ लोग<br />
छुरी-काँटे से<br />
चटख़ारे ले लेकर<br />
और पूछते हैं<br />
कब होगी अगली दावत<br />
और कहाँ !<br />