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11:44, 5 जून 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अंजुम रहबर
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatGhazal}}
<poem>
कुछ दिन से ज़िंदगी मुझे पहचानती नहीं
यूँ देखती है जैसे मुझे जानती नहीं
वो बे-वफ़ा जो राह में टकरा गया कहीं
कह दूँगी मैं भी साफ़ कि पहचानती नहीं
समझाया बार-हा कि बचो प्यार-व्यार से
लेकिन कोई सहेली कहा मानती नहीं
मैं ने तुझे मुआ'फ़ किया जा कहीं भी जा
मैं बुज़दिलों पे अपनी कमाँ तानती नहीं
'अंजुम' पे हँस रहा है तो हँसता रहे जहाँ
मैं बे-वक़ूफ़ियों का बुरा मानती नहीं।
</poem>