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<poem>
तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए
मैं ज़हर खा रही थी कि तुम याद आ गए

कल मेरी एक प्यारी सहेली किताब में
इक ख़त छुपा रही थी कि तुम याद आ गए

उस वक़्त रात-रानी मिरे सूने सहन में
ख़ुशबू लुटा रही थी कि तुम याद आ गए

ईमान जानिए कि इसे कुफ़्र जानिए
मैं सर झुका रही थी कि तुम याद आ गए

कल शाम छत पे मीर-तक़ी-'मीर' की ग़ज़ल
मैं गुनगुना रही थी कि तुम याद आ गए

'अंजुम' तुम्हारा शहर जिधर है उसी तरफ़
इक रेल जा रही थी कि तुम याद आ गए
</poem>
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