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{{KKRachna
|रचनाकार= सुधा गुप्ता
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'''फाँस'''

बदल गया मौसम
फूल गए
अमलतास ।
करक गई ज़ोर से
फिर कोई फाँस ।
-0-
'''सांत्वना'''

फूल
मुझे बहलाने आए-
मेरे पास बैठकर
हिचकी भर-भर
रोने लगे।
-0-
'''हिरना मन'''

मेरे हिरना-मन
कैसे
और
कब
तुम बन गए कोल्हू के बैल ?
आँखें मूँदे
चलते जाते हो- चलते जाते हो
नीरस
इस दुश्चक्र से
ऊबते नहीं ?
-0-
बुज़दिल'''
'''
दहकती टहनियाँ
गुलमौर
की।
‘आग किसने लगाई’
फुसफुसाया जा रहा है
सवाल
ज/न्गल में कई दिन से
बुझाने
कोई आगे नहीं आता ।

</poem>