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{{KKRachna
|रचनाकार= इरशाद अज़ीज़
|अनुवादक=
|संग्रह= मन रो सरणाटो / इरशाद अज़ीज़
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<poem>
बांनै कैय दो कै म्हैं नीं आवूं
बांरी ड्योढी माथै
नीं झुकावूं माथो
नीं करूं मुजरो

मिलता हुवैला थांरी हेली मांय
जीवण सारू सगळा ठाठ-बाट
खावता हुवैला बै लोग भरपेट-रोटी
जकी राख दी हुवैला
आपरै बडेरां री पागड़ी थांरै पगां मांय

म्हैं सबदां रो लिखारो हूं
साच नैं साच
अर झूठ नैं झूठ कैवण रो हौसलो राखूं
गोलीपो करणिया करसी
थारी हां में हां भरणिया भरसी
इज्जत सूं जीवणिया
सै कीं सह सकै पण
आतमा कदैई नीं बेच सकै
</poem>
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