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सूरज है / इरशाद अज़ीज़

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|संग्रह= मन रो सरणाटो / इरशाद अज़ीज़
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<poem>
साचै नैं कदैई
सिद्ध नीं करणो पड़ै
सूरज है
तो उजाळो है
चांद है तो ऊजळी रात
आभो दिन-रात देखतो रैवै सै कीं
आपरी अणगिणत आंख्यां सूं
पण थूं
आंख्यां रो आंधो...।
</poem>
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