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{{KKRachna
|रचनाकार= इरशाद अज़ीज़
|अनुवादक=
|संग्रह= मन रो सरणाटो / इरशाद अज़ीज़
}}
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<poem>
म्हैं जद कदैई
आपो-आप मांय
खुद रै होवण रा
अरथ जोवूं हूं
तो रिस्तां रो अेक जाळ
ठाह नीं कद म्हनैं
पाछो बठै ईज
लेजा‘र छोड देवै
जठै सूं म्हैं चाल्यो

सोचूं,
कदैई तो मिलसी
म्हनैं सोधती फिरती
म्हारै अंतस री हूंस।
</poem>
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