956 bytes added,
11:47, 15 जून 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= इरशाद अज़ीज़
|अनुवादक=
|संग्रह= मन रो सरणाटो / इरशाद अज़ीज़
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
चोर-चोर! कूक्यां सूं
नीं पकड़ीजै चोर
काच साम्हीं जावां जणै
निजरां नीची हुवण रो
मतलब कांई होवै
थूं जाणै है?
सुण, काच, मुळक’र
आ ईज तो कैवै है-
औ म्हासूं निजरां कांई मिलासी
जिको आपरै मांय बैठ्यै
चोर नैं नीं पकड़ सकै
रूस ना म्हारा भायला
कै तो काच फोड़ दै
कै पछै चोर पकड़लै।
</poem>