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|रचनाकार= इरशाद अज़ीज़
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|संग्रह= मन रो सरणाटो / इरशाद अज़ीज़
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<poem>
चोर-चोर! कूक्यां सूं
नीं पकड़ीजै चोर
काच साम्हीं जावां जणै
निजरां नीची हुवण रो
मतलब कांई होवै
थूं जाणै है?
सुण, काच, मुळक’र
आ ईज तो कैवै है-
औ म्हासूं निजरां कांई मिलासी
जिको आपरै मांय बैठ्यै
चोर नैं नीं पकड़ सकै
रूस ना म्हारा भायला
कै तो काच फोड़ दै
कै पछै चोर पकड़लै।
</poem>
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