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कलम उठा / इरशाद अज़ीज़

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|संग्रह= मन रो सरणाटो / इरशाद अज़ीज़
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<poem>
थनैं कठैई जावण री
जरूरत नीं है, अर
कीं करण री भी नीं दरकार

बस कलम उठा अर
बगत री छाती माथै
मांड दै बो नूंवो इतियास

बारूद माथै बैठी आ दुनिया
नीं जाणै कै
अेक चिणगारी कांई कर सकै है

म्हैं चावूं हूं कै आ चिणगारी
थारी ई कलम सूं निसरै
लै म्हारै लोही मांय डुबाय‘र
लिख नूंवो इतियास
मांड नूंवा चितराम
जठै लैरावै आपणो झंडो
जठै बसै अपणायत रो गांव
जठै केसरिया अर मूंगो फगत
रंग ईज हुवै, जिका देंवता रैवै
वीरता अर खुसहाली रो सनेसो।
</poem>
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