भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कलम उठा / इरशाद अज़ीज़

1,348 bytes added, 11:48, 15 जून 2020
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= इरशाद अज़ीज़ |अनुवादक= |संग्रह= मन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= इरशाद अज़ीज़
|अनुवादक=
|संग्रह= मन रो सरणाटो / इरशाद अज़ीज़
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
थनैं कठैई जावण री
जरूरत नीं है, अर
कीं करण री भी नीं दरकार

बस कलम उठा अर
बगत री छाती माथै
मांड दै बो नूंवो इतियास

बारूद माथै बैठी आ दुनिया
नीं जाणै कै
अेक चिणगारी कांई कर सकै है

म्हैं चावूं हूं कै आ चिणगारी
थारी ई कलम सूं निसरै
लै म्हारै लोही मांय डुबाय‘र
लिख नूंवो इतियास
मांड नूंवा चितराम
जठै लैरावै आपणो झंडो
जठै बसै अपणायत रो गांव
जठै केसरिया अर मूंगो फगत
रंग ईज हुवै, जिका देंवता रैवै
वीरता अर खुसहाली रो सनेसो।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
8,152
edits