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{{KKRachna
|रचनाकार= इरशाद अज़ीज़
|अनुवादक=
|संग्रह= मन रो सरणाटो / इरशाद अज़ीज़
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<poem>
आवणो ईज पड़सी
बांनै पाछो
जिका छोडग्या
आपरी माटी नैं बिलखता
अर गमग्या
रोसनी रै जंगळ मांय
रूंख सूं खिरयोड़ा पानड़ा
सूख‘र करड़ा पड़ जावै
बगत री लूवां रा
थपेड़ा खावता-खावता
जीवणो है तो पीवणा पड़सी
खारा गुटका आपरै आंसुवां रा
अर आपरी माटी मांय
रमणो पड़सी
आपो-आपनैं
सींचण खातर।
</poem>
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