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|रचनाकार= इरशाद अज़ीज़
|अनुवादक=
|संग्रह= मन रो सरणाटो / इरशाद अज़ीज़
}}
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<poem>
कांई है थारो
जिको करै इत्तो गुमेज
अेक माटी रो ढगळ थूं
अेक ठोकर में
खिंड‘र रळ जासी
माटी मांय
नीं रैवै थारो आपो।
थारी आतमा पर लाग्योड़ो खांपो
नीं सीं सकैला थूं
अर सांस रै सागै
उधड़ रैयो है
थारै मिनखपणै रो खोळियो
फेरूं भी इत्तो गुमेज?

</poem>
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