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सारे दुकानदार दुकानें बढ़ा गए
बस्ती के क़त्ले -आम पे निकली न आह भी
ख़ुद को लगी जो चोट तो दरिया बहा गए
दोनों ही एक जैसे हैं कुटिया हो या महल
दीवारो -दर के मानी समझ में जो आ गए
नज़रें हटा ली अपनी तो ये मोजजा मोजिज़ा हुआ
जल्वे सिमट के ख़ुद मेरी आँखों मे आ गए
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