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|रचनाकार=मंगलेश डबराल
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पिछली सर्दियाँ बहुत कठिन थीं
उन्हें याद करने पर मैं सिहरता हूँ इन सर्दियों में भी
हालाँकि इस बार दिन उतने कठोर नहीं
पिछली सर्दियाँ बहुत कठिन थीं<br>उन्हें याद करने पर मैं सिहरता हूँ इन सर्दियों में भी<br>चली गई थी मेरी माँहालांकि इस बार दिन उतने कठोर खो गया था मुझसे एक प्रेमपत्र छूट गई थी एक नौकरीरातों को पता नहीं<br><br>कहाँ भटकता रहाकहाँ कहाँ करता रहा टेलीफ़ोनपिछली सर्दियों मेंमेरी ही चीज़ें गिरती रही थीं मुझ पर
ये सर्दियाँ क्यों होगी मेरे लिए पहले जैसी कठोर
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