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ओ दर्पण / ओम नीरव

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माना पाँव पड़े कीचड़ में, छींटे चेहरे पर भी आये,
किन्तु न लाए पास तुम्हारे, कभी बिना धोये चमकाये l
फिरभी फिर भी तुमने छाप दिये हैं, दाग दाग़ सभी वैसे के वैसे,
कोई भी जो देख न पाया, वह तुमने ही देखा कैसे?
नहीं नहीं तुम ही झूठे हो l
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