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Kavita Kosh से
एक झूँक में ही अम्बर के मैंने दोनों छोर बुहारे,
मेरे पौरुष के आगे तो टिके न नभ के चाँद सितारे;
फिर क्यों नभ के धवल पटल पर कागा-सा मडरा मँडरा जाता है?
बार-बार क्यों वही कहानी कालचक्र दुहरा जाता है?