भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
मदिरालय वृन्दावन लगते, जग बौराये होली में।
धमाचौकड़ी मचा के' लौटा, गिरगिट संवत्सर बाँचे,
रंग बदलना जिसे न भाये, गाल फुलाये होली में।
त्रिकिट-ध्रिकिट-धुम नाचे 'नीरव' , लोक नचाये होली में।
———————————
आधार छंद-लावणी
विधान-30 मात्रा, 16, 14 पर यति, अंत में वाचिक गा
</poem>
Mover, Reupload, Uploader
3,965
edits