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Kavita Kosh से
है मुझको मालूम कि अधरों
के ऊपर जगती है बाती,
:::उजियाला करदेनेवालीकर देने वाली
:::मुसकानों से भी परिचित हूँ,
पर मैंने तम की बाहों में अपना साथी पहचाना है।
मैं दीपक हूँ, मेरा जलना ही तो मेरा मुस्काना है|
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