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माँ / कविता वाचक्नवी

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{{KKRachna
|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
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माँ
 
तुम्हारी लोरी नहीं सुनी मैंने,
 
कभी गाई होगी
 
याद नहीं
 फिर भी जाने कैसे  
मेरे कंठ से
 
तुम झरती हो।
 
तुम्हारी बंद आँखों के सपने
 
क्या रहे होंगे
 
नहीं पता
 
किंतु मैं
खुली आँखों
उन्हें देखती हूँ।
खुली आँखों  उन्हें देखती हूँ ।  मेरा मस्तक  
सूँघा अवश्य होगा तुमने
 मेरी माँ ! 
ध्यान नहीं पड़ता
 
परंतु
 मेरे रोम-रोम से  तुम्हारी कस्तूरी फूटती है ।है।तुम्हारा ममत्व  
भरा होगा लबालब
 
मोह से,
 
मेरी जीवनासक्ति
 यही बताती है । है।और  माँ ! तुमने कई बार  
छुपा-छुपी में
 
ढूंढ निकाला होगा मुझे
 
पर मुझे
सदा की
तुम्हारी छुपा-छुपी
बहुत रुलाती है;
बहुत-बहुत रुलाती है;
माँSSS!!!
सदा की
तुम्हारी छुपा-छुपीआमा [नेपाली अनुवाद] वैद्यनाथ उपाध्याय
बहुत रुलाती है;आमा!तिम्रो लोरी सुनिन गैलेबहुत-बहुत रुलाती है;कहिल्ये गाएऊ होलासंझना छैनतैपनिथा छैन कसरीमेरी कंठवाटतिमी झर्दछयौ।तिम्रा बंद आँखों का सपना हरूके थिए होलाथाहा छैनतर भखुलै आँखाले तिनीह रूलाई देख्दछु।मेरे मस्तकसुंध्या होला अवश्यै तिमीलेमेरी आमा!नज़र आऊदेनपरंतुमेरो नशा नशाबाटतिम्रो कस्तुरी फुट्दछ।तिम्रो ममत्वभरिए को होला लबालबमोहलेमेरो जीवनासक्तियही भम्दृछ।
माँ!!अनिआमा।तिमीले कयौं पटकलुकलुकीमाखोजेर निकाल्यौ होला मलाईतर मलाईसँधैंकोतिम्रो लुकालुकीधेरै रूवाऊँछधैरै धेरै रूवाऊँछआमाऽऽऽ!</poem>
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