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Kavita Kosh से
आकाश के तारे भी
तोड़ लाने की बात करते हैं
उन पर
अपनी पसंदीदगी की
मुहर लगा दो
और तुम
ऐसा करते भी हो.।
तुम्हारा मिलने -जुलने का दायरा
कुछ बढ़ता जा रहा है
लेकिन जो घट रहा है
लोगों के कहने पर
अपनी पहचान
भूल गए हो.।
कब तक ?
फिर कोई नवागंतुक
लोगों के वोट
अपनी तरफ तरफ़ करके
तुम्हे तुम्हारे सही स्थान पर
वापस पहुंचा पहुँचा देगा.।
उस पल
तुम्हे
सहानुभूति या सांत्वनासान्त्वनादेने वाला भी नहीं मिलेगा.।
मेरी बात छोड़ो
मैं आज भी
उसी मोड़ पर
जमीं पर अपने पाँव
मजबूती से टिकायेटिकाएखडा खड़ा हूँ,।
इस प्रतीक्षा में
कि शायद
कभी तुम नीचे आओ
तो स्वयं को
अकेला न पाओ</poem>