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|संग्रह=कनुप्रिया / धर्मवीर भारती
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<poem>
घाट से आते हुए
कदम्ब के नीचे खड़े कनु को
ध्यानमग्न देवता समझ, प्रणाम करने
जिस राह से तू लौटती थी बावरी
आज उस राह से न लौट
घाट से आते उजड़े हुए<br>कुंजकदम्ब के नीचे खड़े कनु को<br>रौंदी हुई लताएँध्यानमग्न देवता समझ, प्रणाम करने<br>आकाश पर छायी हुई धूलजिस राह से तू लौटती थी बावरी<br>क्या तुझे यह नहीं बता रहींकि आज उस राह से न लौट<br><br>कृष्ण की अठारह अक्षौहिणी सेनाएँयुद्ध में भाग लेने जा रही हैं!
उजड़े हुए कुंज<br>आज उस पथ से अलग हट कर खड़ी होरौंदी हुई लताएँ<br>बावरी!आकाश पर छायी हुई धूल<br>लताकुंज की ओटक्या तुझे यह नहीं बता रहीं<br>छिपा ले अपने आहट प्यार कोकि आज उस राह इस गाँव से<br>कृष्ण द्वारका की अठारह अक्षौहिणी युद्धोन्मत्त सेनाएँ<br>युद्ध में भाग लेने जा गुजर रही हैं!<br><br>मान लिया कि कनु तेरासर्वाधिक अपना हैमान लिया कि तूउसकी रोम-रोम से परिचित हैमान लिया कि ये अगणित सैनिकएक-एक उसके हैं:पर जान रख कि ये तुझे बिलकुल नहीं जानतेपथ से हट जा बावरी
आज उस पथ से अलग हट कर खड़ी हो<br>यह आम्रवृक्ष की डालबावरी!<br>उनकी विशेष प्रिय थीलताकुंज की ओट<br>छिपा ले अपने आहट प्यार को<br>तेरे न आने परआज सारी शाम इस गाँव से<br>पर टिकद्वारका की युद्धोन्मत्त सेनाएँ गुजर रही हैं<br>उन्होंने वंशी में बार-बारमान लिया कि कनु तेरा<br>सर्वाधिक अपना है<br>मान लिया कि तू<br>उसकी रोमनाम भर कर तुझे टेरा था-रोम से परिचित है<br>मान लिया कि ये अगणित सैनिक<br>एक-एक उसके हैं:<br>पर जान रख कि ये तुझे बिलकुल नहीं जानते<br>पथ से हट जा बावरी<br><br>
आज यह आम्रवृक्ष आम की डाल<br>उनकी विशेष प्रिय थी<br>सदा-सदा के लिए काट दी जायेगीतेरे न आने पर<br>क्योंकि कृष्ण के सेनापतियों केसारी शाम इस पर टिक<br>वायुवेगगामी रथों कीउन्होंने वंशी गगनचुम्बी ध्वजाओं में बार-बार<br>तेरा नाम भर कर तुझे टेरा था-<br><br>यह नीची डाल अटकती है
आज और यह आम की डाल<br>पथ के किनारे खड़ासदाछायादार पावन अशोक-सदा के लिए काट दी जायेगी<br>वृक्षक्योंकि कृष्ण के सेनापतियों के<br>आज खण्ड-खण्ड हो जाएगा तो क्या -वायुवेगगामी रथों की<br>गगनचुम्बी ध्वजाओं यदि ग्रामवासी, सेनाओं के स्वागत में<br>यह नीची डाल अटकती है<br><br>तोरण नहीं सजातेतो क्या सारा ग्राम नहीं उजाड़ दिया जायेगा?
और यह पथ के किनारे खड़ा<br>दुःख क्यों करती है पगलीछायादार पावन अशोक-वृक्ष<br>आज खण्ड-खण्ड हो जाएगा तो क्या -<br>हुआ जोयदि ग्रामवासीकनु के ये वर्तमान अपने, सेनाओं के स्वागत में<br>तोरण नहीं सजाते<br>तेरे उन तन्मय क्षणों की कथा सेतो क्या सारा ग्राम नहीं उजाड़ दिया जायेगा?<br><br>अनभिज्ञ हैं
दुःख उदास क्यों करती होती है पगली<br>नासमझक्या हुआ जो<br>कि इस भीड़-भाड़ मेंकनु के ये वर्तमान अपने,<br>तू और तेरा प्यार नितान्त अपरिचिततेरे उन तन्मय क्षणों की कथा से<br>अनभिज्ञ छूट गये हैं<br><br>,
उदास क्यों होती है नासमझ<br>कि इस भीड़-भाड़ में<br>तू और तेरा प्यार नितान्त अपरिचित<br>छूट गये हैं,<br><br> गर्व कर बावरी!<br>कौन है जिसके महान् प्रिय की<br>अठारह अक्षौहिणी सेनाएँ हों?<br/poem>
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