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अगर यह निखिल सृष्टि
मेरा ही लीलातन है
तो यह तो बताओ मेरे लीलाबंधु
कि कभी-कभी “मुझे” भय क्यों लगता है?
अक्सर आकाशगंगा के
सुनसान किनारों पर खड़े हो कर
कोहरे की गुफाओं में पंख टूटे
जुगनुओं की तरह रेंगते देखा है
तो मैं भयभीत होकर लौट आयी हूँ……हूँ…
क्यों मेरे लीलाबन्धु
तो मुझे डर किससे लगता है
मेरे बन्धु!
कहाँ से आता है यह भय
जो मेरे इन हिमशिखरों पर