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बोलकर तुमसे / यश मालवीय

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|संग्रह=एक चिड़िया अलगनी पर एक मन में / यश मालवीय
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<poem>
फूल सा हल्का हुआ मन
बोलकर तुमसे
आँख भर बरसा घिरा घन
बोलकर तुमसे
फूल सा हल्का हुआ मन<br>स्वप्न पीले पड़ गये थेबोलकर तुमसे<br>तुम गये जब सेबहुत आजिज़ आ गये थेरोज़ के ढब सेआँख भर बरसा घिरा घन<br>मौन फिर बुनता हरापनबोलकर तुमसे<br><br>
स्वप्न पीले पड़ गये थे<br>तुम गये जब से<br>बहुत आजिज़ आ गये थे<br>रोज़ के ढब से<br>मौन फिर बुनता हरापन<br>बोलकर तुमसे<br><br> तुम नहीं थे, ख़ुशी थी<br>जैसे कहीं खोई<br>तुम मिले तो ज्यों मिला<br>खोया सिरा कोई<br>पा गये जैसे गड़ा धन<br>बोलकर तुमसे<br/poem>
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