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{{KKCatKavita}}
एक बार {{KKCatKavita}}<brpoem>एक बारबरखुरदार!<br>एक रुपए के सिक्के, <br>और पाँच पैसे के सिक्के में,<br>लड़ाई हो गई,<br>पर्स के अंदर<br>हाथापाई हो गई।<br>जब पाँच का सिक्का<br>दनदना गया<br>तो रुपया झनझना गया<br>पिद्दी न पिद्दी की दुम<br>अपने आपको<br>क्या समझते हो तुम!<br>मुझसे लड़ते हो,<br>औक़ात देखी है<br>जो अकड़ते हो!<br><br>
इतना कहकर मार दिया धक्का,<br>सुबकते हुए बोला<br>पाँच का सिक्का-<br>हमें छोटा समझकर<br>दबाते हैं,<br>कुछ भी कह लें<br>दान-पुन्न के काम तो<br>हम ही आते हैं।<br><br/poem>
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