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{{KKRachna
|रचनाकार=विजयशंकर चतुर्वेदी
|अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKAnthologyVarsha}}{{KKCatKavita}}<poem>अंतरिक्ष में बसी इंद्रनगरी नहीं 
न ही पुराणों में वर्णित कोई ग्राम
 
बनाया गया इसे मिट्टी के लोंदों से
 
राजा का किला नहीं
 
यह नगर है बिना परकोटे का
 
पट्टिकाओं पर लिखा
 
हम्मूराबी का विधान यहाँ नहीं लागू
 
सीढ़ियोंवाले स्नानागार भी नहीं हैं यहाँ
 
यहाँ के पुल जाते अक्सर टूट
 
नालियों में होती ही रहती टूट-फूट
 
इमारतें जर्जर यहाँ की।
 
द्रविड़ सभ्यता का नगर भी नहीं है यह
 
यहाँ नहीं सजते हाट काँसे-रेशम के
 
कतारों में खड़े लोग
 
बेचते हैं श्रम और कलाएँ सिर झुकाए
 
करते रहते हैं इंतजार किसी देवदूत का
 
रोग, दुःख और चिंताओं में डूबे
 
शाम ढले लौटते हैं ठिकानों पर
 
नगर में बजती रहती है लगातार कोई शोकधुन।
</poem>
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